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Sant Kabir Das ji bhajan lyrics
क्रम. संत कबीरदासजी ने गाये हुवे भजन
1 ऐसनी देह निरालप बौरे, मुवल छुवे नहिं कोई हो
2 आज आनंद लेर लागी कबीरा! कबका आया रे वेरागी
3 आंबो मोर्यो रे सदगुरुने दरबार , रे साहेली मोरी
4 आन पडा चोरनके नगर, सत्संग बिना जिय तरसे हो
5 ना गुरूभक्ति साधकी संगत, करत अधम निर्लाजा
6 आपन कर्म न मेटो जाई, कर्मका लिखा मिटै धौं कैसे, जो युग कोटि सिराई
7 आपन पौ आपुही बिसरियो… जैसे श्वान कांच मंदिरमें, भरमित भूस मरीयो
8 आवे ना जावे मरे नहिं जन्मेदर दिवार दर्पण भयो, जीस देखुं तिस तोय
9 अस लोगनको बहि जाने दे… हंस हंस मिलि चलो सरोवर
10 अब नर चेतो देहियां बुढानी चेतत चेतत उमर बीत गई
11 अब तुं गाफेल मत रहेना बे, जनमका सार्थक करना बे
12 ऐसी है दिवानी दुनियां, भक्तिभाव नहि बूझेजी
13 अगम भूमि दरशाया संतो एसा अमर घर पाया
14 अखंड साहेबजी को नाम, और सब खंड है, खंडित मेरु सुमेर, खंडित आ ब्रह्मांड है
15 अमरपुर ले चलो हो सजना अमरपुरीकी सांकर गलिया, अडबड है चलना
16 अरे दिल गाफिल गफलत मत कर, एक दिन जम तेरे आवेगा
17 अरे कोई सफा न देखा दिलका
18 अवधू अंध कूप अन्धियारा या घट भीतर सात समुंदर, यहीमें नदी नारा
19 अवधु भजन भेद है न्यारा अब कोई खेतिया मन लावै
20 अवधू मेरा मन मतिवारा,उनमनि चढा मगन रस पीवै,त्रिभुवन भया उजियारा
21 अवसर बार बार नहिं आवै जो चाहो करि लेव भलाई, जन्म जन्म सुख पावै
22 बाबा हमको खेलैदा नैहरवा दिन चारी
23 बकवा मत करना बे खुदाका नाम जपना बे;उत्तम नरदेह पाया प्राणी उसका हित कछु करना
24 बलम संग सोई गई दोउ जनी ईक ब्याही ईक अर्धी कहावै, दूनो सुगम सुहाग भरी
25 बन्दे जागो अब भई भोर, बहुतक सोये जनम सिराये, ईहां नहिं कोई तोर
26 बन्दे करिले आप निबेरा, आप जियत लखु आप ठौर करूं, मुये कहां घर तेरा
27 बने जो कुछ धरम करले, यही एक साथ जावेगा, गया अवसर न फिर तेरे, ये हरगिज हाथ आवेगा
28 भाग जागे संत पाहुन आवै, द्वारे होत कथा औ कीर्तन, हिल मिल मंगल गावै
29 भाईरे दुई जगदीश कहां ते आया, कहु कौने बौराया, अलाह राम करीमा केशव, हरि हजरत नाम धराया
30 भाग्य बहु जे घरे संत पधार्या, करी समरण भवसागर तार्या
31 भाई ! मारो साथीडो रीसाणो एने कोण मनावा जाय
32 भजन बिन बावरे, तुंने हीरासा जनम गंवाया,कभि न आया संत शरणमें, कभि न हरि गुन गाया
33 भजन बिन बावरे, तूंने हीरासा जनम गंवायो… ना संगत साधुनके कीन्हा, ना गुरू द्वारे आयो
34 भजन बिन जीवन पशू समान… भोगै लडै खाय पशु सोवै, यहै चारिमां मनुवा भुलान
35 भजन कब करि हौ जनम सिरान… गर्भवासमें बहु दुःख पायो, बाहर जाय भुलान
36 भजन कर बीती जात धरी… जगमें आया हवा जब लागी, माया अमल करी
37 भजन कर जगमें जीवन सार… नर देहीका गर्व न कीजै, जर बर होती छिनमें छार
38 भजु मन जीवन नाम सबेरा… सुंदर देह देखि जनि भूलौ, झपट लेत जस बाज बटेरा
39 भजु मन राम उमर रहि थोडी… चार जन मिलि लेनको आये, लिये काठकी घोडी
40 भरममें भूल रहा संसार सांच वस्तु कैसेके पावै, मानै नहिं ईतबार
41 भंवरवाके तोरे संघवा जाई… आवेकी बेरिया बडा खुश होला, दु्अरा पर बाजे बधाई
42 भूला लोग कहैं घर मेरा,जा घरमें तू भूला डोले, सो घर नाहीं तेरा
43 भूल्यो रे मन भमरा तुं कयां भम्यो, भम्यो दिवसने रात
44 बिन जागे न पईहौ (सजन) (सखिया),क्या तुम सोवो मोह खोहमें, कामिन ऐसी लगाये अंखिया
45 बिन सतगुरू नर फिरत भुलाना… केहरी सुत ईक लाय गडेरिया, पाल पोसके कियो सयाना
46 बिना रे खेवैया नैया, कैसे लागे पार हो केते निगुरा खडै किनारे, केते खडे मंझदार हो
47 बिना सतसंग कुमति न छूटी चाहे जाओ मथुरा, चाहे जाओ काशी, ह्रदयकी मोह ग्रंथि न टूटी
48 बीषयोंसे मनको तृप्त करना नहिं अच्छा
49 बित गये दिन भजन बिनारे… बाल अवस्था खेल गंवायो, जब जवानी तब मान गनारे
50 बीती बहुत रही थोडीसी खाट पडे नर झंखन लागे, निकस गयो प्राण चोरीसी
51 बोलवा वाळा ने ओळखावजो गुरुजी मारा...सान करी ने समजावजो
52 चादर हो गी बहुत पुरानी, अब तो शोच समझ अभिमानी
53 चदरियां झीनी रे झीनी, राम नाम रस भीनी
54 चलना है दूर मुसाफिर, काहे सोवे रे
55 चली है कुल बोरनी गंगा नहाय सतुवा कराईन बहुरी भुंजाईन
56 चुनरी काहे न रंगाये गोरी पांच रंगमां ई चुनरी तोहे सतगुरू दीन्हा
57 डगमग छांडि दे मन बौरा अबतो जरेबरे बनि आवै, लीन्हों हाथ सिंधोरा
58 डगमग छांडि दे मन बौरा अबतो जरेबरे बनि आवै, लीन्हों हाथ सिंधोरा
59 डर लागै औ हांसी आवै, अजब जमाना आयारे
60 सायाजी अमने डर तो लाग्यो रे सोई दनक.. सोई दिनको रे घडी पलको
61 डर लागै औ हांसी आवै, अजब जमाना आयारे... धन दौलत लै माल खजाना, वैश्या नाच नचायारे
62 दर्शन देना प्राण पियारे, नंदलाला मोरे नैनेकि तारे
63 दशहुं द्वार नरक भरि बूडे चलहु का टेढो टेढो टेढो
64 धोबिया बनका भया न घरका घाटै जाय धुबनिया मारै, घरमें मारै लरिका
65 धोबिया जल बिच मरत पियासा जलमें ठाड पिवै नहिं मूरख, अच्छा जल है खासा
66 दिन नीके बीते जाते हय, राम नामके सुमरनको
67 दिन रात मुसाफिर जात चला जिनका चलना रैन बसेरा, सों क्यों गाफिल रहत परा
68 दिवाने मन कोन है तेरा साथी दिवाने मन भजन बिना दुख पैहो
69 द:खडां अमारां रे हां... संतो भाई ! वहेंची वहेंचीने लेनां रे हां हां हां हां
70 दुलहिन काहे न अंगिया धुलाई बालापनेकी मैली अंगिया, विषयन दाग परि जाई
71 दुनिया अजब दिवानी, मोरी कही दुनिया अजब दिवानी, मोरी कही एक न मानी
72 दुनिया दिवानी के हम दिवाना, जाको हय भाई अनहद गाना
73 दुनिया मतलबके गरजी, अब मोहि जान परी
74 फिरहु का फूले फूले फूले जब दस मास उर्ध्वमुख होते, सो दिन काहेको भूले
75 गगन की ओट निशाना है दाहिने सूर चंद्रमा बांये तीन के बीच छिपाना है
76 गरव क्यिो सोई नर हार्यो, सियारामजी से गरव कियो सोई नर हार्यो रे
77 घुंघटके पट खोल सखीरी, मिलहे सांई दिदारा
78 घुंघटका पट खोलरे, तोको पिया मिलेंगे घट घटमें वहि सांई बसत है, कटूक वचन मत बोल रे
79 ज्ञान गरीबी साची संतो, ज्ञान गरीबी साची बिन समज्या साधु होई बेठा,रूदिये हांडी काची रे
80 गुरू बिन कौन बतावै बाट भ्रांति पहाडी नदिया बीचमें, अहंकारकी लाट
81 गुरू गोविंद दोउं खडे, काहके लागुं पाय, बलिहारी गुरू आपनी, गोविंद दियो बताय
82 गुरू मोहिं दीन्हीं अजब जडी, सोई जडी मोहि प्यारी लगत है, अमृत रसन भरी
83 गुरूने पढाया चेला नियामत लाना पहली नियामत लकडी लाना, जंगल झाडके पास न जाना
84 गुरूसे कर मेल गंवारा, का सोचत बारंबारा.. जब पार उतरना चाहिये, तब केवटसे मिल रहिये
85 गुरूसे लगन कठिन है भाई लगन लगे बिनु काज न सरिहैं, जीव परलय होय जाई
86 हमका ओढावे चादरिया रे, चलती फिरीया चलती फिरीया
87 हमारे गुरू मिले ब्रह्मज्ञानी, पाई अमर निशानी
88 हंसा प्यारे सरवर तजि कहा जाय...जेहि सरवर बिच मोतिया चुगत होते, बहु विधि केलि कराय
89 हरिजन चार वरणसे ऊंचा नहिं मानो तो साखि देखाऊं, सवरीके फल खायो झूठा
90 हरिका भजन करूंगा बे, जमसे खुब लडुंगा बे अहमता मारूं ममता मारूं, खान झाद कहेलावुं
91 हम परदेशी पंछी मुसाफीर आये हे सहेलाणी रेवुं तमारी आ नगरी मा जब लग हे दाना पाणी
92 ईस तन धनकी कोन बराई, देखत नयनमें मट्टी मिलाई
93 इतना भेद गुरुजी हमको बतादो, समज पकड गुरु मोरी बया रे
94 ईतना भेद गुरु हमको बता दो, हमको बता दो, समज पकडो गुरु मोरी बैयां रे
95 जा दिन मन पक्षी उड जैहें ता दिन तेरे तन तरूवरके, सबै पात झरि जैहें
96 जा दिन मन पक्षी उड जैहें... ता दिन तेरे तन तरूवरके, सबै पात झरि जैहें
97 जा घर कथा नहिं गुरू किर्तन, संत नहिं मिजमाना
98 जागो जागो हो ननदिया, महलिया आये चोर
99 जागु जागु जंजाली जियरा, यह तो मेला हाटका, धोबी घरका कुत्ता होई हौ, नहिं घरका न घाटका
100 जाको राखे सांईयां, मार शके न कोय, बाल न बांका कर शके, जो जग बेरी होय
101 जानत कौन पराये मनकी.. हीरोंकी परख जौहरि जाने, लागत चोट सरासर धनकी
102 जारौं मैं या जगकी चतुराई.. राम भजन नहिं करत बावरे, जिन यह जुगति बनाई
103 जगत कुल रैनका सपनां, समज मन कोई नहिं अपनां
104 जगतमें खबर नहिं पलकी... सुकृत करले, प्रभु नाम समरले, कोन जाने कलकी
105 जागो जागो हो ननदिया, महलिया आये चोर
106 जागु जागु जंजाली जियरा, यह तो मेला हाटका,धोबी घरका कुत्ता होई हौ, नहिं घरका न घाटका
107 जहां देखे सो दुःखीया बाबा, सुखीया कोई नहिंरे.. जोगीभी दुःखीया जंगम दुःखीया, तपसीकु दुःख दुना
108 जाको राखे सांईयां, मार शके न कोय, बाल न बांका कर शके, जो जग बेरी होय
109 जनम धरि जो न किया सत्संग.. ताको केवल पशु करि मानो, यदपि मनुषका अंग
110 जनम सब धोखेमें खोय गयो.. द्वादश बरस बालापन बीता, बीसमें जवान भयो
111 जनम तेरा बातोंही बीत गयो.. तुने कबहु न राम कह्यो, तुने कबहु न कृष्ण कह्यो
112 जानत कौन पराये मनकी... हीरोंकी परख जौहरि जाने, लागत चोट सरासर धनकी
113 जारौं मैं या जगकी चतुराई राम भजन नहिं करत बावरे, जिन यह जुगति बनाई
114 जिन सदगुरू पहिचाना नहिं, तिनको तिनुं लोक ठिकाना नहिं
115 जिन सदगुरू पहिचाना नहिं, तिनको तिनुं लोक ठिकाना नहिं
116 जीनके मनमें श्री राम बसे, उन साधन और किये न किये
117 जीनके मनमें श्री राम बसे, उन साधन और किये न किये
118 झिनी झिनी बिनी चदरिया... काहेके ताना काहेके भरनी, कौन तारसे बिनी चदरिया
119 जियरा जाहुगे हम जानी... राज करंते राजा जईहैं, रूप करंते रानी
120 जियरा जाहुगे हम जानी... राज करंते राजा जईहैं, रूप करंते रानी
121 जोगिया खेलो बचायके, नारी नयन चलै बान
122 जोतां रे जोतां रे अमने जडियां रे साचां सागरनां मोती
123 का नर सोवत मोह निशामें, जागत नाहिं कूच नियराना.. पहिला नगारा श्वेत केश भयै, दूजे बैन सुनत नहिं काना
124 का मांगु कुछ थिर न रहाई, देखत नैन चला जग जाई, ईक लाख पूत सवा लाख नाती, ता रावणके दिया न बाती
125 का सोवो सुमिरनके बेरिया.. गुरू उपदेशकी सुधी नाहिं, झकत फिरो झक झलनि झलरिया
126 कालका अजब तडाका बे, तुं क्या जाने लडका बे.. नवबी मर गये दशबी मर गये, मर गये सहस्त्र अठासी
127 कब सुमरोगे राम, अब तुम कब सुमरोगे राम, गरभ कुलीमें जपतप कीनो, नीकल हुवा बेईमान
128 न मन मरे, न माया मरे, मर मर जाय शरीर आशा—तृष्णा ना मरे, कह गये दास कबीर
129 कबीरा सोया क्या करे, बेठा रहा और जाग, जिनके संगसे बिछर्यो, वाहीके संग लाग
130 करमनकी गत न्यारी उधो करमनकी गत न्यारी.. मुरख मुरख राज करत है, पंडित फिरे भीखारी
131 करो यतन सखी सांई मिलनकी.. गुरिया गुरवा सूप सुपलिया, त्यज दे बुध लरिकैया खेलनकी
132 करो रे मनवा दिनकी तदबीर.. जब यमराजा आन पडेंगे, नेक धरत नहिं धीर
133 काया बौरी चलत प्राण काहे रोई.. काया पाय बहुत सुख कीन्हो, नित उठी मलि मलि धोई
134 काया नहिं तेरी नहिं तेरी, मत कर मेरी मेरी
135 केई पेरे समजावुं ?भूल्या मनने, कंई पेरे समजावुं... लोढुं जो होय तो लुवारी तेडावुं,खेरना अंगारा पडावुं
136 केते दिनके उठाये ठाट.. जौन यतन तुम देही पाली, सो देही मिलि माटी खाक
137 खबरि नहिं या जगमें पलकी, सुकृत करिले नाम सुमिर ले, को जाने कलकी
138 खाख में खपी जाना बंदा, माटी में मील जाना, तमे मत करो अभिमाना एक दिन पवन से उड जाना
139 खलक सब रैनका सपना, समझ मन कोई नहिं अपना
140 खसम बिनु तेलीको बैल भयो, बैठट नाहिं साधुकी संगति, नाधे जनम गयो
141 खेल सब पैसेका, सब कुछ बातां है पैसा.. पैसा जोर पैसा लरका, पैसा बाबा ब्हेना
142 को जाने बात पराये मनकी.. रात अंधेरी चोरा डांटै, आश लगाये पराये धनकी
143 को शिखवै अध मनको ज्ञाना.. साधु संगति कबहूं नहिं कीन्हा, रटत-रटत जग जन्म सिराना
144 कोई हरिजन मिटावै हमारी खटका.. वृक्ष एक अधरमें जामा, जड उपर पलई तरका
145 कोई पियत राम रस प्याला.. रसना कटोरी भरि भरि पीवे, झुकत फिरे मतवाला…
146 कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो... चंदन काष्ठके बनल खटोलना, ता पर दुलहिन सूतल हो
147 कुमतिया दारूंण नितहिं लरै.. सुमति कुमतियां दूनों बहिनी, कुमति देखिकै सुमति डरै
148 क्या मांगुं मेरे राम, थोडे जीवनमें क्या मांगुं, घर नहिं रहेना, अमर नहिं काया-काया
149 क्या सोवै गफलतके माते, जाग जाग उठि जागरे,और कोई तोर काम न आवै, गुरू चरणन उठि लाग रे
150 क्या देखा मन भया दिवाना, छोडी भजन माया लिपटाना
151 क्या देखि दिवाना हुआ रे.. माया सूली साज बनी है, काम नरकका कूआ रे
152 गुरुजी से लगन कठिन मेरे भाई ए लगन लगे रे बिना काज ना सरी है
153 लाग्या शबदनां बाण रे, जेनां प्रेमे वींधाणा प्राण भजनमें घुमत रेनां जीयो रे, जेने लाग्यां शबदनां बाण रे हो
154 माल जिन्होंने जमा किया, सौदा परिहारे जाते हैं
155 मानत नहिं मनमोरा साधो, मानत नहिं मनमोरा, बार बार मैं कहि समुझावौ, जगमें जीवना थोरा…
156 मन फुला फुला फिरे, जगतमें कैसा नाता रे
157 मनकी खोज करो मेरे भाई, अंत न छुटे मन कहां समाई
158 मन लागो मेरो यार फकीरीमें.. जो सुख पायो राम भजनमें, सो सुख नाहिं अमीरीमें
159 रांजा रांजा करदी हुण मे आपे रांजा होय सुफियो का कलाम गाते गाते वो खुद सूफी हो गये
160 मन मौला जाने गुजर गये गुजरान.. कोई दन रूखा फीका रंदा, कोई दिन दूध मलीदा खंदा
161 मन ना रंगाये, रंगाये जोगी कपडा.. आसन मांडी मंदिरमें बेठे, नाम छांडी पूजन लगे पथरा
162 मन ना रंगाये जोगी कपडा रंगाये.. तनको जोगी सब कर, मनको करे न कोई
163 मन तोहि किस विधि समझाऊं.. सोना होय सोहाग मंगाऊं, बंकनाल रस लाऊं
164 मन तुम भजन करो जग आईकै.. मन तुम भजन करो जग आईकै
165 मन रे तूं नेकी करले, दो दिनके महेमान.. कहांसे आया कहां जायेगा, तन छूटे मन कहां रहेगा
166 मत बांधो गठरिया अपयशकै.. धरम छोडि अधरमको धायो, नैया डुबाओ जनम भरिकै
167 मत कर मोह तूं, हरि भजनको मान रे.. नयन दिये दरशन करनेको, श्रवण दिये सुन ज्ञान रे
168 मैं केहि समझावौ या जग अंधा... एक दुई होय उन्हें समझावों, सबहिं भुलाने पेटके धन्धा
169 मेरा तेरा मनुवा कैसे एक होई रे... मैं कहता हौं आंखन देखी, तू कहता कागदकी लेखी
170 चुनरीमें परि गयो दाग पिया.. मोरी चुनरीमें परि गयो दाग पिया
171 मेरी सुरती सुहागन जाग रे, जाग रे, हो जाग रे
172 मेरी सुरति सुहागन जाग रे.. का सोवे तू लोभ मोहमें, उठ गुरू चरणमें लाग रे
173 मेरो सैंया निकर गयो मैं न लरी... ना मैं बोली न मैं चाली, ओढी चुनरिया रही परी
174 मिलना होय तो मिलजुल लीजै, येही दमका मेला है
175 मिथ्या मायाजाल जगत मन, क्यों तू देख भुलाया है
176 मोको कहां ढूंढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पासमें
177 मोलना सुत कितेबकी बातें.. जिस बकरीका दूध पियो तुम, सो तो मातु कि नाते
178 मोरे लगी गौ बाण सुरंगी हो.. धन सदगुरू उपदेश दियो है, होय गयो चित्तभ्रृंगी हो
179 मुखडा क्या देखै दरपनमें, दया धरम नहिं मनमें... गहरी नदिया नाव पुरानी, उतरन चाहै पलमें
180 मुखडा क्या देखे दरपनमें, तेरे दया धरम नहिं मनमें
181 मुनिया पिंजडे वालीना, तेरा सदगुरू है व्यापारी.. अलख डारपे मुनिया बैठी, खाय ज्ञानकी बूटी
182 न कछु न कछु राम बिनारे देह धरेकी ईहै परम गति, साधु संगति रहेनारे
183 ना मैं धर्मी नाहिं अधर्मी, ना मैं जती न कामी हो
184 नाम हरिका जप ले बन्दे, फीर पीछे पछतायेगा
185 नाम जपन क्युं छोड दिया... क्रोध न छोडा जूठ न छोडा, सत्य वचन क्युं छोड दिया
186 नगुनी काया तेरा क्या गुन गावुं, महेल रच्यो, तिमें रहेन न पावुं
187 नर तैं क्या पुराण पढि कीन्हा अनपायनी भक्ति नहिं उपजी, भूखै दान न दीन्हा
188 नर तैं क्या पुराण पढि कीन्हा... अनपायनी भक्ति नहिं उपजी, भूखै दान न दीन्हा
189 नर तुम झूठे जनम गंवाया... झूठेके घर झूठा आया, झूठे ते परिचाया
190 नरको नहिं परतीत हमारी.. झूठा बनिज किये झूठेसे, पूंजी सबन मिलि हारी
191 नर जन्म पाय काह कीन्हारे... कबहुं न एक पल सपनेहु मरख, गुरूका नाम तू लीन्हारे
192 संतने संतपणा रे मनवा नथी मफतमां मळता नथी मफतमां मळता रे एना मूल चूकववा पडतां
193 निंदसे अब जाग बन्दे निंद निशानी मोतकी, उठ कबीरा जाग
194 निर्धनके धन राम हमारे, निर्धनके धन राम हमारे
195 पानी बीच बतासा संतो, तनका यही तमासा है
196 पानीमें मीन पियासी, मोहि सुन सुन आवत हांसी
197 पडे अविद्यामें सोनेवालों, खुलेगी आंखें तुम्हारी कब तक
198 पंडित एक अचरज बड होई, एक मरी मुये अन्न नहिं खाई, एक मरे सिझै रसोई
199 पंडित बुझ पियो तुम पानी, तुमेह छुट कहां लपटानी
200 पंडित काहे बकरिया मारी.. जब पंडितको जन्म भयो है, बकरी भई महतारी
201 पंडित वाद वदे सो जुठा,रामके कहे जगत गति पावे, खांड कहे मुख मिठा
202 पानी में मीन पियासी, मोहि सुन सुन आवत हांसी..आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी
203 पाणीडां शेनी मशे जाव मोरी मैया! कूवे पर आसन जोगीया, काचा घडानी ठीकरी ने , घडी घडी मवा रे कुंभार, राजा
204 परम प्रभु अपनेही उर पायो, जुगन जुगनकी मिटी कल्पना, सदगुरू भेद बतायो
205 पीले प्याला हो मतवाला, प्याला नाम अमीरसकारे.. बालापन सब खेल गंवाया, जवान भयो नारी बसकारे
206 राम भजा सो जीता जगमें हाथ सुमरनी पेट कतरनी, पढत भागवत गीता
207 राम भजनकु दिया, कमळमुख राम भजनकु दिया.. लख चोरांसी फेरे फीरकर, सुंदर नर तन पाया
208 राम नामकी लूंट है, लूंट शके तो लूंट, फिर पाचे पस्तायेगा, प्राण जायेंगे छूट
209 राम नाम तूं भजले प्यारे, काहेकु मगरूरी करता हय, कच्ची मट्टीका बंगला तेरा, पाव पलकमें ढळता हय
210 राम रहीम एके है रे, काहे करो लडाई, वह निर्गुनीया अगम अपारा, तीनो लोक सहाई
211 राम नाम तु जपले कायकु मगरूबी करता हे.. कची मटीका बंगला तेरा, पाव पलकमां ढलता हे
212 राम रस ऐसा हे मेरे भाई, जो कोइ पीवे अमर हो जाय
213 राम रस प्याला हे भरपूर ,पीयो रे कोई घटक घटक घटक
214 सब दिन होत न एक समाना... एक दिन राजा हरिश्चंद्र गृह, कंचन भरे खजाना
215 सब पैसेका भाई, अपना साथी नहिं कोई
216 सब पैसेके भाई, दिलका साथी नहिं कोई
217 सदगुरू चारों वरण विचारी.. ब्राह्मण वही ब्रह्मको जानै, पहिर जनेउ विचारी
218 सदगुरू शरण जायके, तामस त्यागिये
219 साधो जीवतही करूं‘ आशा, मुये मुक्ति गुरू कहैं स्वारथी, झूठा दै विश्वासा
220 साधुका होना मुश्किल है,काम क्रोधकी चोट बचावै, सो जन साधु है
221 साहेब तेरा भेद न जाने कोई... पानी लै लै साबुन लै लै, मल मल काया धोई
222 सांई मिलना नहिं आसानका.. सांईका मिलना बरकत चढना, चित्त चूके किस कामका
223 सांईकी नगरियां जाना है रे बंदे... जग नाहिं अपना, बेगाना है रे बंदे, जाना है रे बंदे
224 सकल तजि राम सुमर मेरे भाई, माटी के तन माटी मिलि है, पवनमें पवन समाई
225 समज भज मन खोज दिवाने, आशक होकर सोना क्यारे
226 समुझ मन कोई नहिं अपना... प्राणनाथ जब निकरन लागे, मुंह पर परे झपना…
227 समुझ देख मन मीत पियरवा, आसिक होकर सोना क्या रे…
228 संगत संतन की करले, जनमका सार्थक कछु करले
229 संत केरा सरोवर मां अमे, निर्मळ मनथी नाह्या रे
230 संतन जाति न पूछो निर्गुनिया... साधै ब्राह्मण साघै क्षत्रिय, साधै जाती बनिया
231 संतनके संग लाग रे, तेरी अच्छी बनेगी
232 संतो भाई आई ज्ञानकी आंधी, भ्रमकी टाटी सबै उडानी, माया रहे न बांधी
233 संतो भक्ति सतोगुरू आनी... नारी एक पुरूष दुई जाया, बूझो पंडित ज्ञानी
234 संतो बोले ते जग मारे,अनबोले ते कैसेक बनि है, शब्दहि कोई न विचारे
235 संतो देखत जग बौराना, सांच कहौं तो मारन दावै, झूठे जग पतियाना
236 संतो घरमें झगरा भारी, रात दिवस मिलि उठि उठि लागे, पांच ढोटा एक नारी
237 संतो जगको को समजावै, तजि प्रत्यक्ष सतगुरू परमेश्वर, जड को पूजन जावै
238 संतो कोई जन शब्द विचारा, शब्द भेद यह है सतगुरूका, परख लेहु टकसारा…
239 संतो राह दुनों हम दीठा, हिन्दु तुरूक हटा नहिं माने, स्वाद सबनको मीठा
240 संतो सदगुरू अलख लखाया, परम प्रकासक ज्ञान पुंज, घट भीतरमें दरशाया…
241 सपन करि जान्यो यह जिन्दगानी... चार दिनोकी यह जिन्दगानी, नहकै फिरत उतानी…
242 सारी पहिर मैली कर डारी, दामनकी बहु भारी जी
243 सतनामका सुमिरन करले, कल जाने सतनाम का सुमिरन करले, कल जाने क्या होय
244 सुगना बोल तूं निज नाम... आवत जात बिलम न लागै, मंजिल आठों धाम
245 सुगवा पिंजरवा छोडि भागा... ईस पिंजरेमें दस दरवाजा, दस दरवाजा किवरवा लागा
246 सुमिरन बिनु गोता खावोगे.. मूठी बांध गर्भसे आया, हाथ पसारे जाओगे
247 सुमिरन करि ले मेरे मना, तेरी बीती उमर हरिनाम बिना
248 सुनो सुनो साधोजी, राजा राम कहोजी
249 तज दिये प्राणरे काया कैसे रोई... सांईसे सब होत है, बंदेसे कछु नाहि
250 तेरे घटमें सरजनहार, तुं खोज मन काया नगरी
251 तोरी गटरीमें लागे चोर, बटोहिया का सोवे
252 तोरी गटरीमें लागे चोर, बटोहिया का सोवे
253 ठगनी क्या नैना चमकावै... कददू काट मृदंग बनाया, निंब्बू काट मंजीरा
254 ठठरी छांडि चले बनजारा... ईस ठठरी बिच सात समुंदर, कोई मिठा कोई खारा
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Sant Kabir Das Ji Biography
Sant kabir ki biography

कबीर साहब का जीवन :- ई.स 1398 से 1518

उनके गुरु:- स्वामी रामानंद
जन्म स्थान: काशी
मृत्यु: मगहर
रचना : साखी, पद, शब्दी, रवेनी

उसका इत्यादि. प्रसिद्ध पुस्तक: 'बीजक'

संत कबीर की जीवनी :-

संत कबीर एक महान संत कवि थे। उनका साहित्य हिंदू और मुस्लिम धर्म तथा सूफीवाद से प्रभावित है। कबीर आज भी अपने सरल, संक्षिप्त और मार्मिक भजनों और छंदों के लिए प्रसिद्ध हैं। कबीर स्पष्टवादी और निडर थे। उन्होंने अपने सिद्धांतों के अनुसार जीवन जीने के लिए दुनिया की हर तरह की यातना और आलोचना सहन की।

उनके जन्म के बारे में अलग-अलग मत हैं। वे कबीर पंथियों की मान्यता के अनुसार अवतरित हुए हैं। वह प्रकाश के रूप में आकाश से उतरे और 1398 में जेठ सूद पूनम के दिन काशी में लहरतारा झील के पास कमल के फूल पर एक बच्चे के रूप में प्रकट हुए। कई लोगों के अनुसार उनका जन्म काशी में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। लोक-लाज के कारण ब्राह्मण ने अपने इस पुत्र को लहरतारा झील के पास छोड़ दिया।

महान संत कबीर

Sant kabir ki biography

કબીર સાહેબનું જીવન :- ઈસવીસન 1398 થી 1518.

તેમના ગુરુ :- સ્વામી રામાનંદ 
જન્મસ્થળ: કાશી
મૃત્યુ: મગહર
રચના : સાખી, પદ, શબ્દી, રવેણી

તેમના આદિ. પ્રસિદ્ધ ગ્રંથ : 'બીજક'

સંત કબીરનું જીવનચરિત્ર :-

સંત કબીર એક મહાન સંત કવિ હતા. તેમના સાહિત્યનો પ્રભાવ હિંદુ અને મુસ્લિમ ધર્મો અને સૂફી સંપ્રદાયમાં જોવા મળે છે. કબીર આજે પણ તેમના સરળ, સંક્ષિપ્ત અને હૃદયસ્પર્શી હાજનો અને પદો ના  કારણે પ્રખ્યાત છે. કબીર સ્પષ્ટ વક્તા અને નિર્ભય હતા. તેમણે તેમના સિદ્ધાંતો પાર જીવન વિતાવવા માટે  દુનિયાના તમામ પ્રકારના ત્રાસ અને ટીકાઓ સહન કરી હતી.

તેમના જન્મ વિશે વિવિધ મંતવ્યો છે. કબીરપંથીઓની માન્યતાઓ અનુસાર તેઓ અવતર્યા છે. તેઓ પ્રકાશના રૂપમાં આકાશમાંથી ઉતર્યા અને 1398માં જેઠ સુદ પૂનમના દિવસે કાશીના લહરતારા તળાવ પાસે કમળના ફૂલ પર બાળકના રૂપમાં પ્રગટ થયા. ઘણા લોકોના મતે તેઓ કાશીમાં એક વિધવા બ્રાહ્મણના ગર્ભમાંથી જન્મ્યા હતા. બ્રાહ્મણે જાહેર શરમના કારણે આ પુત્રને લહરતારા તળાવ પાસે ત્યજી દીધો.

મહાન સંત કબીર

Sant kabir ki biography

Life of Kabir Sahib:- 1398 to 1518

His Guru:- Swami Ramanand

Birth Place: Kashi

Death: Maghar

Composition: Sakhi, Pad, Shabdi, Raveni

His famous book: 'Bijak'

Biography of Saint Kabir:-

Saint Kabir was a great saint poet. His literature is influenced by Hindu and Muslim religion and Sufism. Kabir is still famous for his simple, short and poignant hymns and verses. Kabir was outspoken and fearless. He endured all kinds of torture and criticism of the world to live life according to his principles.

There are different opinions about his birth. He has incarnated according to the belief of Kabir Panthis. He descended from the sky in the form of light and appeared as a child on a lotus flower near Lahartara Lake in Kashi on the day of Jeth Sud Poonam in 1398. According to many people, he was born from the womb of a widow Brahmini in Kashi. Due to public shame, the Brahmin left his son near the Lahartara lake.

The great saint Kabir

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Hardik Velani
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